1.
मैं चाहता कहना,
पर कह नहीं पा रहा हूँ -
ये क्या है मुझमें,
जिसे समझ नहीं पा रहा हूँ?
2.
क्या बात ये समझने की है भी,
या सिर्फ देखने बस की -
है भाव क्या मैं देखने जिसे की,
हिम्मत जुटा नहीं पा रहा हूँ?
3.
दोस्तों की महफ़िल में इस,
लाँघकर सीमाओं को डर की -
शब्दों से खोद के मैं मन की माटी,
संभावनाओं के बीज बोता जा रहा हूँ ...
4.
डूब कर अब इस मन के जंगल में,
बुनकर झरुए के गुलदस्ते,
नक्शे जो फेंक दिए मरोड़ के,
बिन सोचे अब मैं चला जा रहा हूं...