Sunday, May 30, 2021

ताक़ता तिरंगा

                                                कहते हैं शिष्टाचार है - 

आपका भावुक होना बेकार है

अरे थोड़ा बहुत चलता है साहब -

यह तो सरकारी नौकर का अधिकार है।।

 

इसके बगैर चल ही नहीं सकती राजनीति

इसको रोकने सफल ना होगी आपकी कोई रणनीति

सामाजिक जीवन का बन गया है यह अनिवार्य हिस्सा

इसके बगैर नहीं बढ़ता कहीं नस्तियों का क़िस्सा ।।

 

फिर क्यूँ नहीं मानता मेरा यह दिल?

क्यूँ तिरंगे के सामने भावुक ना होना है मुश्किल?

लगता जैसे हो रहा मेरे तिरंगे का तिरस्कार

जाने किस मनहूस घड़ी में बन गया यह शिष्टाचार

इसके चलते जारी रहेगा कमजोर पे धनी का अत्याचार,

यह, आँख चुराते, कमजोर ज़मीर वालों का भ्रष्टाचार ।।

 

नासमझ ज़रा खुद में देख

खेल खेल में कर रहा तू ख़ुद से भेद

पर्याप्त है तेरे परिवार के लिए सरकार का वेतन,

मौक़ा दे रहा कुछ कर गुज़रने का तुझे तेरा वतन,

यह मौक़ा है तेरे जीवन का सबसे अनमोल तौहफ़ा,

मत कर तू अपने पड़ोसी को देख, इस तिरंगे से धोखा ...



1 comment:

Yogesh Joshi said...

We need people like you sir

Powered By Blogger