मैं समझ ना पाऊँ तेरी बोली
तेरे सामने लगता है मैं कुछ ना जानू
चेहरे की तेरी चमक और तेरे शब्दों की गति से
कोशिश करूँ की तेरी मंशा पहचानू,
बेचे तू मुझे यह अनमोल वस्तुएँ
ले तू मुझसे सिर्फ़ कुछ चिल्हड पैसे
लाख मेरे कहने पे भी
एक आना भी तू ज़्यादा ना ले,
तेरे पैर छूने को उतारू क्यूँ हूँ मैं ?
तेरे भोलेपन में एक तीखापन है
तेरी आँखों में है सच्चाई जगमग
अपनी बाहों पे अपनी पहचान पहने तू
नहीं तुझे कोई बनावटी शर्म
कपटी सागर की मछली मैं
तेरी सच्चाई की लहर में भिगा दूँ अपना मन …
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