थोड़ी चाहत है, थोड़ी जरूरत भी,
कम्बखत हिम्मत ही होती नहीं है।
मत बनाओ इसको और मुश्किल,
यह मुश्किल थोड़ा पहले से ही है।
अपनी कमजोर सी इस परछाई को अपना लो,
शायद, हिम्मत भी तुम में ही है।
जरा गहरे से देखो इस परछाई को अपनी,
नकली डर के सिवा, कुछ भी नहीं है।
थोड़ी नादान, थोड़ी बहकी सी है जरूर,
पर यह छवि तो अपनी ही है।
समा लो अपने प्रेम सागर में,
इसकी सिसकती अस्तित्व की बूंदें।
पुराने शिकवे, शिकायती किस्से सारे,
छोड़ो और लगा लो इसको गले।
ना खोजों तुम चाभी इधर-उधर,
हर ताले की चाभी अंदर ही है।
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