तुम्हें महलों की दरकार थी,
पर मैं तो झोपड़ी में खुश था।
तुम जमीन के सौदे करते गए,
इधर इस धरती ने मुझे खरीद लिया।
तुम जहाजों में सफर करो,
मैं तो बादलों में ही खो गया।
तुम हवाओं में महल बनाते रहे,
मैंने जंगल की दौलत को कबूल किया।
तुम माया के मेलों के मजे लो,
मैं तो शून्य में बस के भस्म हुआ।
पुश करते चले तुम सारी ज़िंदगी,
पर मकसद तो साला पुल था।
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