क्या है जो इस उम्र में भाये?
पाँच से पंद्रह – खिलौने पराए,
अपने बेजान, उसके लुभाऐं।
पंद्रह से पच्चीस – गाड़ियों की चाह,
अपनी खटारा, उनकी कार वाह!
पच्चीस से पैंतीस – पराई बाहें,
अपनी अधूरी, दूसरी ललचाएं।
पैंतीस से पैंतालीस – बाप पराया,
अपना पुराना, उनका सरमाया।
पैंतालीस से पिचहत्तर – बेटा दूजा,
अपना बुद्धू, उनका सूरज।
पिचहत्तर से पचासी – ज़िंदगी जो बीती,
अपनी ठहरती, उनकी चलती रहती।
पचासी के बाद – अब मौत की बारी,
काश उस जैसी आसान हो हमारी।
तकता रहा मैं गैरों को उम्रभर,
ख़ुद में पूर्णता, ना आयी नज़र ।
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