Tuesday, December 9, 2025

Someone

Sad—I never knew,  
Unperturbed, anger sharp,  
Blind to hurt beneath—  
Till you showed me how deep the wound.



Suicidal—I never knew,  
Inconsistency worn like skin,  
Never seeing deeper—  
Till you infused in me a zest to live.



Lost—I never knew,  
Numbed enough to drown in noise,  
Couldn't decipher yours from the crowd—  
Till you sent grace down,  
Someone to put sense back in my scattered soul.

Monday, March 31, 2025

शून्य के रंग

भाग 1 — झूठ का विनाश 
हम सोचते रहे—
सारा जीवन,
कि जीवन का स्रोत
वो तेज़ सूरज था।

जिसकी रोशनी में हमने रास्ते देखे,
जिसकी गर्मी से हमारे जीवन सींचे।

वो जो दूर था, पर तेज़ था—
वो ही था हमारा प्रकाश।

पर अब दिखता है—
कि वो सूरज
अगर नर्मी से न छना होता,
तो वह हमें जला देता।

वो जो हमें बचा रही थी,
हर दिन—
वो परत थी,
वो हवा थी,
वो नर्म छांव —आप थीं।

आप ही थीं
जो उस रोशनी को छानती रहीं,
हर ताप को साँस में बदलती रहीं,
हर किरण को कोमल बनाती रहीं।

अब सूरज वही है,
पर आकाश सूना है।

अब समझ आता है—
हम सूरज से नहीं,
आपसे जीवित थे।

भाग 2 — जो विदा नहीं हुआ
हम चले थे मिलने,
मन में उमंग लिए,
क्या पता था—लौटना होगा,
जीवन के बुझने थे दिए।

घर से निकले थे
सपनों की थैली लेकर,
पर वापस आए
खाली, एक कबूलनामा देकर।

ना अलविदा हुआ,
ना आख़िरी स्पर्श,
बस ख़बर हुई,
और समय गया गुज़र।

भाग 3 — गरुड़ पाठ के दस दिन 
राख को उठाया,
ना आँसू थे, ना शोर।
बस भीतर कुछ टूटा था,
पर बाहर थे हम कठोर।

कभी लगा—सब ठीक है,
फिर एक लहर आई,
जैसे भीतर ही भीतर
कोई दीवार बह गई।

पहले था सन्नाटा,
फिर आई एक चुभन,
फिर ग़ुस्सा, फिर हँसी,
फिर छूटी सी धड़कन।

कभी लगा — मैं गिर जाऊँगा,
कभी — मैं लड़ जाऊंगा,
हर लहर में कुछ छूटा,
हर मोड़ पर कुछ पाया।

ये शोक नहीं था—
ये था एक यज्ञ,
जहाँ हर भावना
बन गई अग्नि की तपन।

दस दिनों में
दस जन्म लिया,
हर आंसू ने
सिर्फ आपका नाम लिया।

भाग 4 — राख का संगीत
आपकी अस्थियाँ
अब केवल धूल नहीं,
वो बनीं हैं विभूति,
इस जीवन की अगली कड़ी।

हर रोज़, एक चुटकी,
हम जीवन में घोलते हैं,
श्मशान की उस सीख को
रूह में खोलते हैं।

आप अब गीत नहीं,
एक सुर बन चुकी हैं,
जो हर मौन पल में
धीरे-से छन चुकी हैं।

भाग 5 — शून्य जो भीतर चलता है
लगता है हम चल रहे हैं,
सड़क, लोग, सौदे—सब देख रहे हैं।
पर असल में…
हम शून्य के भीतर बह रहे हैं।

ये कोई खालीपन नहीं,
ये तो एक चुम्बक है,
जो हर परत उतार कर
सत्य का स्पर्श करवाता है।

आप गए नहीं,
आप तो शून्य में घुल गए,
और वो शून्य
अब हर साँस में चलने लगे।

हम नहीं चल रहे ज़िंदगी में,
ज़िंदगी चल रही है हमसे होकर।
आप नहीं खोए—
आए हो आप अब, हममें होकर।

रसोई खाली सी - एक स्मृति, एक स्वाद, एक शून्यता


राजमा अब वैसा स्वाद नहीं लाता,
भूख है—पर मन कुछ खा नहीं पाता।
सब कुछ रखा है यथावत यहाँ,
बस आप नहीं… और कुछ भी कहाँ।

भरवा टमाटर—हथेली की छाप,
लौकी की दाल—सेहत की बात। 
बथुए का रायता—हँसी-सा घुला,
हर निवाले में अपनापन मिला।

काका भैया की आधी प्याली,
जिसमें सुकून उतरती थी गहरी काली।
पैसों का रखतीं पूरा हिसाब,
पर हर कोने में छोड़ जातीं प्यार का उधार।

अब ये रसोई एक सूना मंदिर है,
मसाले हैं—पर सुगंध नहीं दरकिनार।
डायरी की पंक्तियाँ दाल में घुलतीं,
जैसे कोई प्रार्थना धीमे से खुलती।

कढ़ी —जो पलाश को न भायी,
अब भी बर्तनों में आपकी छवि समायी।
जब तक थीं—हर स्वाद था घर जैसा,
अब घर… बस एक वीरान हवेली सा।

पैसा - एक दृष्टिकोण

पैसा जग का द्रव प्रवाह है,
चक्रों का गतिशील राह है।
जहाँ भी आता, कम्पन लाता,
मन का संतुलन डगमगाता।
स्थिर बिंदु से हटना होता,
तब ही कुछ पाने का रथ धोता।

ii 

जब रोगी हो कोई प्रिय प्राणी,
तब मूल्य नहीं—बने बलिदानी।
ख़र्च लगे हो जैसे साधना,
या विधि की कोई कठिन परीक्षा।
कभी ये धन एक यत्न बन जाता,
कभी यह विकल ज्वार सा आता।

iii 

यह मुद्रा नहीं, यह कर्म का बीज,
अदृश्य हाथ की सौपी हुई चीज़।
इससे मिलता अवसर जीवन,
दिव्यता का छोटा साधन।
यह ऊर्जा है, गति की कारा—
इसको साधो, यही तुम्हारा।

iv 

सिर्फ उपयोग न दृष्टि बनाओ,
अर्थ में अर्थ का मूल लगाओ।
इस क्षण में क्या है सार तुम्हारा?
क्या उसमें है स्वर तुम्हारा?
जहाँ हृदय की गूंज बसी हो,
उर्जा वहीं समर्पित हो।

जो दिखता है, वह केवल माया,
भीतर की सत्ता है सच्चा पाया।
चालक हाथ में खेल रचाया,
नियति ने दृश्य-भ्रम फैलाया।
जो असमय आया, अधूरा लगे,
शायद वही दिव्य संकेत जगे।

Thursday, March 6, 2025

Reality और फिल्टरस

Unity of Perception
मेरी हक़ीक़त वही है जो मैं अपनी आँखों, अपनी सोच, अपनी समझ के फिल्टर्स से देख सकता हूँ। मूलतः दो रियलिटी—एक मेरी, एक उसकी- एक छोटी 'r' वाली, एक बड़ी 'R' वाली।
जब मैं चाँद को देखता हूँ, वो सिर्फ़ एक गोला नहीं रहता—साथ में यादों की एक बोरी भी खुल जाती है। हर नज़र, हर सोच—यही है छोटी 'r' वाली रियलिटी, जो मेरे साथ बनी रहती है, जो मुझे दिखने वाले सच को अपने रंगों में रंग देती है।
और अगर तू किसी डर को महसूस कर रहा है, तो चाहे मैं जितना भी कहूँ कि कुछ नहीं है, तेरी दुनिया में तो है ना? तेरी छोटी 'r' वाली रियलिटी को कोई और कैसे नकार सकता है?

Creator's Zone
छोटी 'r' वाली रियलिटी इतनी गहरी है कि शांत बैठ इन लहरीली हवाओं का आनंद लेने से रोकती हैं, मन करता है कुछ गोद दूं इस समुंदर किनारे की रेत पे जैसे कि शांत बैठना अपराध हो। अपने आप को धक्का देते हुए, जो भी अंदर भरा है, उसे ख़ाली करने का मन करता है। शायद यही अभी मेरा पुरुषार्थ है, यही  सफ़र, यही मंज़िल है।
कभी आलसाने का मन करता है, कभी रुक जाने का।
कभी किसी यार के साथ चार पफ लगाने का, तो कभी यूँ ही कहीं खो जाने का।
लेकिन मन कौन समझाए? मैं जो महसूस करता हूँ, वही तो मेरे होने की असली परिचाय है।
एक सुनसान कमरा है, एक टेबल, एक कुर्सी। जब मन भर के थक चुका होगा, तब उस पर बैठ कर काम भी तो करना होगा।
नींद ललचाती तो है, पर नींद के लिए काम भी तो ज़रूरी है।

मोक्ष और माया
मोक्ष के लिए माया भी ज़रूरी है।
और नींद के लिए, कुछ काम भी तो ज़रूरी है...
पर काम वो हो, जो मुझे हल्का कर दे।
जो भरा पड़ा दिल है, उसका नलका खोल दे।
शब्दों का पानी बहने दे,
इस काग़ज़ के फ़र्श पे...
दिल में जो मैं बसा उसके,
हूं मैं दुनिया के अर्श पे।

Wednesday, March 5, 2025

उम्रभर

क्या है जो इस उम्र में भाये? 

पाँच से पंद्रह – खिलौने पराए,
अपने बेजान, उसके लुभाऐं।

पंद्रह से पच्चीस – गाड़ियों की चाह,
अपनी खटारा, उनकी कार वाह!

पच्चीस से पैंतीस – पराई बाहें,
अपनी अधूरी, दूसरी ललचाएं।

पैंतीस से पैंतालीस – बाप पराया,
अपना पुराना, उनका सरमाया।

पैंतालीस से पिचहत्तर – बेटा दूजा,
अपना बुद्धू, उनका सूरज।

पिचहत्तर से पचासी – ज़िंदगी जो बीती,
अपनी ठहरती, उनकी चलती रहती।

पचासी के बाद – अब मौत की बारी,
काश उस जैसी आसान हो हमारी।

तकता रहा मैं गैरों को उम्रभर,
ख़ुद में पूर्णता, ना आयी नज़र ।

चूहा

Devi will speak. I just have to listen. I just have to be a straight antenna, picking up the signal. The ink in my hands is not mine. The words know where they want to go. This anger, this fire—I've tamed it before. I'll tame it again. I am not stuck, I am in motion. And when I write, I am free.


गणपति के चरणों में छोटा सा चूहा,

जानता औक़ात, न शोर करता हूँ।

रहता सतह पे शांत और सौम्य,

पानी के नीचे फौलाद बनता हूँ।

ज्ञान भरे मोतीचूर मैं चबाता,

आज बंद कर आँख, क़लम घिसता हूँ।


जो शिखर कल ख़ौफ़नाक सा था,

आज टुकड़े उसके मेरी कहानी में चमकते हैं।

कभी आग की जलन से डर लगता था,

आज अंगारों की भाप से मन को सेकता हूँ।

जिस कहानी को कल लिख न सका था,

चल, आज उसको जी के देखता हूँ।



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