अकेला खड़ा हूँ मैं,
अनंत की सीमाओं को ताकते...
इन्हें लांघने की चाहत है मेरी,
आपके बिना ना हो सके ये पूरी...
अनंत की सीमाओं को ताकते...
इन्हें लांघने की चाहत है मेरी,
आपके बिना ना हो सके ये पूरी...
क्यूँ आपको छोड़ आया हूँ,
मैं खुद पर न जाने कितना खफा हूँ...
इस शैतान को मैं मार डालूँ,
पर इन नादान बहानों से फिर से चूक जाऊं...
आ जाओ न मेरे संग आप फिर,
आपको कभी मैं भूल न पाऊं...
पर जब हो क्षण निर्णय का,
तब क्यूँ आपकी सीख को भुला देता हूँ ...
यह पुकार है इन सूखे
आसुओं की,
चीख है इस प्यासे जीवन की...
मत रहो इतना आप दूर मुझसे,
ठीक करो मुझे,
सिखा दो खुद तक पहुँचने के रास्ते...
दो सीख मुझे इन रास्तों पर चलने की...
थोड़ी हिम्मत,
और थोड़ा साहस भी...
PS - To all those who have guided me in this life and those before. Especially remembering Rishi Nityapragya ji
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