ख्वाहिश है आँसुओं की,
यह चाहत रो पड़ने की,
सम्बन्ध नहीं इनका सुख या दुःख से,
माध्यम हैं खुद को मिटा देने के...
मेरा दिल है जो टूटने से डरता है,
अपने झूठे अस्तित्व को संजोने वाला,
एक अंश है मेरा,
जो बिखरने से झिझकता है...
आज मैंने जो अपने महादेव को है पुकारा,
विनाश हो गया जो अपना माना था मैंने सारा,
टूट गयीं अहम की बनावटी इमारतें,
उनके टुकड़े भी मेरे आँसुओं में बह गए...
शम्भो !
यह चाहत रो पड़ने की,
सम्बन्ध नहीं इनका सुख या दुःख से,
अपने झूठे अस्तित्व को संजोने वाला,
जो बिखरने से झिझकता है...
विनाश हो गया जो अपना माना था मैंने सारा,
टूट गयीं अहम की बनावटी इमारतें,
उनके टुकड़े भी मेरे आँसुओं में बह गए...
PS: It's a blessing to be able to cry in the presence of one's Guru. It releases one's karmic baggage and is probably the most transformational experience a seeker can ask for.
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