मेरी हक़ीक़त वही है जो मैं अपनी आँखों, अपनी सोच, अपनी समझ के फिल्टर्स से देख सकता हूँ। मूलतः दो रियलिटी—एक मेरी, एक उसकी- एक छोटी 'r' वाली, एक बड़ी 'R' वाली।
जब मैं चाँद को देखता हूँ, वो सिर्फ़ एक गोला नहीं रहता—साथ में यादों की एक बोरी भी खुल जाती है। हर नज़र, हर सोच—यही है छोटी 'r' वाली रियलिटी, जो मेरे साथ बनी रहती है, जो मुझे दिखने वाले सच को अपने रंगों में रंग देती है।
और अगर तू किसी डर को महसूस कर रहा है, तो चाहे मैं जितना भी कहूँ कि कुछ नहीं है, तेरी दुनिया में तो है ना? तेरी छोटी 'r' वाली रियलिटी को कोई और कैसे नकार सकता है?
छोटी 'r' वाली रियलिटी इतनी गहरी है कि शांत बैठ इन लहरीली हवाओं का आनंद लेने से रोकती हैं, मन करता है कुछ गोद दूं इस समुंदर किनारे की रेत पे। जैसे कि शांत बैठना अपराध हो। अपने आप को धक्का देते हुए, जो भी अंदर भरा है, उसे ख़ाली करने का मन करता है। शायद यही अभी मेरा पुरुषार्थ है, यही सफ़र, यही मंज़िल है।
कभी आलसाने का मन करता है, कभी रुक जाने का।
कभी किसी यार के साथ चार पफ लगाने का, तो कभी यूँ ही कहीं खो जाने का।
लेकिन मन कौन समझाए? मैं जो महसूस करता हूँ, वही तो मेरे होने की असली परिचाय है।
एक सुनसान कमरा है, एक टेबल, एक कुर्सी। जब मन भर के थक चुका होगा, तब उस पर बैठ कर काम भी तो करना होगा।
नींद ललचाती तो है, पर नींद के लिए काम भी तो ज़रूरी है।
मोक्ष और माया
मोक्ष के लिए माया भी ज़रूरी है।
और नींद के लिए, कुछ काम भी तो ज़रूरी है...
पर काम वो हो, जो मुझे हल्का कर दे।
जो भरा पड़ा दिल है, उसका नलका खोल दे।
शब्दों का पानी बहने दे,
इस काग़ज़ के फ़र्श पे...
दिल में जो मैं बसा उसके,
हूं मैं दुनिया के अर्श पे।