Thursday, March 6, 2025

Reality और फिल्टरस

Unity of Perception
मेरी हक़ीक़त वही है जो मैं अपनी आँखों, अपनी सोच, अपनी समझ के फिल्टर्स से देख सकता हूँ। मूलतः दो रियलिटी—एक मेरी, एक उसकी- एक छोटी 'r' वाली, एक बड़ी 'R' वाली।
जब मैं चाँद को देखता हूँ, वो सिर्फ़ एक गोला नहीं रहता—साथ में यादों की एक बोरी भी खुल जाती है। हर नज़र, हर सोच—यही है छोटी 'r' वाली रियलिटी, जो मेरे साथ बनी रहती है, जो मुझे दिखने वाले सच को अपने रंगों में रंग देती है।
और अगर तू किसी डर को महसूस कर रहा है, तो चाहे मैं जितना भी कहूँ कि कुछ नहीं है, तेरी दुनिया में तो है ना? तेरी छोटी 'r' वाली रियलिटी को कोई और कैसे नकार सकता है?

Creator's Zone
छोटी 'r' वाली रियलिटी इतनी गहरी है कि शांत बैठ इन लहरीली हवाओं का आनंद लेने से रोकती हैं, मन करता है कुछ गोद दूं इस समुंदर किनारे की रेत पे जैसे कि शांत बैठना अपराध हो। अपने आप को धक्का देते हुए, जो भी अंदर भरा है, उसे ख़ाली करने का मन करता है। शायद यही अभी मेरा पुरुषार्थ है, यही  सफ़र, यही मंज़िल है।
कभी आलसाने का मन करता है, कभी रुक जाने का।
कभी किसी यार के साथ चार पफ लगाने का, तो कभी यूँ ही कहीं खो जाने का।
लेकिन मन कौन समझाए? मैं जो महसूस करता हूँ, वही तो मेरे होने की असली परिचाय है।
एक सुनसान कमरा है, एक टेबल, एक कुर्सी। जब मन भर के थक चुका होगा, तब उस पर बैठ कर काम भी तो करना होगा।
नींद ललचाती तो है, पर नींद के लिए काम भी तो ज़रूरी है।

मोक्ष और माया
मोक्ष के लिए माया भी ज़रूरी है।
और नींद के लिए, कुछ काम भी तो ज़रूरी है...
पर काम वो हो, जो मुझे हल्का कर दे।
जो भरा पड़ा दिल है, उसका नलका खोल दे।
शब्दों का पानी बहने दे,
इस काग़ज़ के फ़र्श पे...
दिल में जो मैं बसा उसके,
हूं मैं दुनिया के अर्श पे।

Wednesday, March 5, 2025

उम्रभर

क्या है जो इस उम्र में भाये? 

पाँच से पंद्रह – खिलौने पराए,
अपने बेजान, उसके लुभाऐं।

पंद्रह से पच्चीस – गाड़ियों की चाह,
अपनी खटारा, उनकी कार वाह!

पच्चीस से पैंतीस – पराई बाहें,
अपनी अधूरी, दूसरी ललचाएं।

पैंतीस से पैंतालीस – बाप पराया,
अपना पुराना, उनका सरमाया।

पैंतालीस से पिचहत्तर – बेटा दूजा,
अपना बुद्धू, उनका सूरज।

पिचहत्तर से पचासी – ज़िंदगी जो बीती,
अपनी ठहरती, उनकी चलती रहती।

पचासी के बाद – अब मौत की बारी,
काश उस जैसी आसान हो हमारी।

तकता रहा मैं गैरों को उम्रभर,
ख़ुद में पूर्णता, ना आयी नज़र ।

चूहा

Devi will speak. I just have to listen. I just have to be a straight antenna, picking up the signal. The ink in my hands is not mine. The words know where they want to go. This anger, this fire—I've tamed it before. I'll tame it again. I am not stuck, I am in motion. And when I write, I am free.


गणपति के चरणों में छोटा सा चूहा,

जानता औक़ात, न शोर करता हूँ।

रहता सतह पे शांत और सौम्य,

पानी के नीचे फौलाद बनता हूँ।

ज्ञान भरे मोतीचूर मैं चबाता,

आज बंद कर आँख, क़लम घिसता हूँ।


जो शिखर कल ख़ौफ़नाक सा था,

आज टुकड़े उसके मेरी कहानी में चमकते हैं।

कभी आग की जलन से डर लगता था,

आज अंगारों की भाप से मन को सेकता हूँ।

जिस कहानी को कल लिख न सका था,

चल, आज उसको जी के देखता हूँ।



Monday, March 3, 2025

The Lies

"Doesn't matter what lies the world has made you believe, What does is the lies you have told yourself." - Someone must have said some time. This one's for you dear brother - 


Come out of the Falseties,
come out in the beauty,
to the abundant bounty,
through the unheard stories.

You know what your heart says,
do  that in Plenty,
escape the web of crafted lies,
no matter how the world complies.

Abundance is slow to unfurl,
as soul fire burns and embers swirl,
no quick fix, no fleeting gain,
fix what’s needed, shed the chain.

Dig within where truths reside,
no more falsehoods left to hide,
wash away what’s counterfeit,
and let your new life be legit.

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