समय के थपेड़ों में उलझी,
तन पे सजाए, निशान ये, सितम के -
इस विशाल दुनिया में हो तुम छोटी सी,
अपनी भोली सी, थकान भरी, मुस्कान लिए -
सूखे से कवच में खुद को लपेटी,
अंदर बैठी हो गुपचुप, मन में, मिठास भरे -
रिश्तों के पकवान में हो समा जाती,
हर सलवट में, सहज, प्रेम भरे।
अदबुद्ध हो, अदबुद्ध हो तुम सचमुच, मेरी किशमिश । ।
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