वो इमली की चुस्की,
वो जीने की चाहत,
वो अपनों की जरूरत,
और मौत की फुसलाहट।
वो जीने की चाहत,
वो अपनों की जरूरत,
और मौत की फुसलाहट।
आज ये सब लड़े थे,
इस बंद कमरे में,
इक सिकुड़ती रज़ाई के अंदर।
इस मौत के शून्य में,
जाने कब हुई मेरी देवी प्रकट -
एक इमली की चुस्की से,
उस टूटे शरीर में उसने भर दी ताकत।
उन टूटे दिलों में, बना ली अपनी बसाहट।।
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