आया था तेरे दरबार मैं, दुनिया की चाहत ले कर,
भर दी झोली मेरी तूने, माया की शोहरत दे कर।
आज, फिर एक अरसे बाद आया मैं,
शोहरत भरी यह झोली ले कर।।
समर्पित तेरे चरणों में,
मेरे मुखौटों को तू स्वीकार कर।
कर दे आज विदा तू मुझे,
अपनी थोड़ी सी फकीरियत दे कर।।
भर दी झोली मेरी तूने, माया की शोहरत दे कर।
आज, फिर एक अरसे बाद आया मैं,
शोहरत भरी यह झोली ले कर।।
समर्पित तेरे चरणों में,
मेरे मुखौटों को तू स्वीकार कर।
कर दे आज विदा तू मुझे,
अपनी थोड़ी सी फकीरियत दे कर।।
काँटों को फूल बना दे,
तेरी स्वीकार्यता में थी ऐसी ताकत।
तेरे फटे तलवे से भी थी चमकती,
तेरे फकीरी की बादशाहत।।
क्या वजीर, क्या राजा, और क्या कोई रक्षक,
आज न्यायाधीश भी तेरे चरणों में नगमस्तक।
दिलों में सबके दे प्रेम की दस्तक,
ऐसी मेरे फकीर की ताकत।।
PS - Written after a recent rendezvous with Shirdi's Sai Baba.
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