ये वो खाज नहीं जो सिर्फ सता के निकल जाए,
आग है ये अंदर लगी, जो सब कुछ खाख कर जाए।
आत्मा मेरी इस आग में है तप्ति,
अधबुद्ध है मेरे इन प्राणों का ज्वालामुखी।।
ना खोजूँ बहाने अब इससे भागने के,
अपना के इसे खुद से लगा लूँ मैं गले।
आखिर देखो तो क्या है यह जिंदगी,
है तो बस ये एक छोटी सी खुजली ही।।
PS: Dedicated to those searching for their meaning in the effervescence of life.
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