क्या शिकवा करूँ मैं,
क्या शिकायत हो तुझसे -
जब बिन मांगे है दिया,
इतना तूने खुदसे।
क्या कष्ट, क्या डर जब तू उछाले,
कर दे मुझे आसमाँ के हवाले।।
रोता जरूर हूँ कभी कभार -
रोता, जरूर हूँ कभी कभार,
थक के, तेरे बेमतलब खेलों
से,
पर कैसे छोड़ूँ तुझपे भरोसा?
पर कैसे छोड़ूँ तुझपे भरोसा,
जब जिया हूँ तेरे ही कंधों पे ।।।
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