Tuesday, February 6, 2024

अपेक्षाएं - खुद की, खुद से

 

I

क्या कहूँ मैं खुद से,

क्यूँ खफा हूँ मैं खुद में?

क्यूँ ढकेलूँ अपनी सीमाओं को,

इन जालिम अपेक्षाओं से?

क्यूँ जीने को लागे, इन अपेक्षाओं का सहारा,

क्यूँ बिन इस ढोंग के जीना है गवारा?  


II

है जालिम जरूर, पर है ये जरूरी,

इन अपेक्षाओं से है जुड़ी, आस जीने की।

तो जी ले तू ऐसे,

कि है कोई कल नहीं।

जो लेना है जीने का मज़ा पूरा,

तो सब कुछ तू कर अभी।

1 comment:

अनामिका said...

अगर आप को बुरा न लगे। तो.......आशाए है तो,अपेक्षाए है , अपेक्षाऍ है तो उम्मीदे है, उम्मीदे है, तो प्यार है, और जहा प्यार है वहा तकरार है, और यही तो जीने का जज्बा है

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