1.
ये कहानी है
एक सुंदर सी बघिया की,
और चंद नन्हे से फूलों की,
पर था इसमें एक पेड़ भी ...
2.
बीते बचपन-जवानी फूलों के,
बघिया की गोद में खिलखिलाते,
एक पेड़ की छाया में पलते,
हँसते हुए, गीत उसके गाते ...
3.
वो फूल तो थे बघिया के दिवाने,
पर पेड़ समझे कि वे उसके अहम के दृश्य से थे चहकते,
अपने झूठे वहम में, मूर्ख पेड़ वो बादलों को ललकारे,
बेखबर, की थी वो बघिया ही, जो उसे बचा के रखे ...
4.
क्यूंकि जब बादल निकलें वृक्ष के अहम को तोड़ने,
बघिया फूलों को आघोष में लिए, हाथ जोड़ तूफानों को रोके,
श्रृष्टि के कहर को झेल, अपनों के जीवन सीचें,
बेखबर पुष्प और पेड़, बस खेलते रहे खेल दुनिया के ...
5.
पर पता नहीं कब और कैसे,
उस पेड़ में और भी भारी राक्षस आ बसे,
जो बघिया को कोसें और मारें,
डरावने रूपों से फूलों की रूह झक्झोंकें ...
6.
राक्षसों का सिलसिला था चलता रहा,
बघिया के प्रेम से मेहेकता था फूलों का समा,
कई साल बघिया ने राक्षसों से सबको बचा के रखा,
जब हुआ बहुत तो बेचारी ने बिमारी को कबूला ...
7.
आज बघिया के पत्ते हैं झड गए,
और अर्ध-ज्ञान के अहम से फूले वृक्ष को छोड़ गए,
उनकी ममता की खुशबू से आज भी फूलों का जीवन महके,
याद में उनकी, फूलों के आँसू सूखे ...
8.
अब, फूल देखें पेड़ को बिन बघिया के घेराव के,
डरे, सोचें, बिन सोचे वो डरे ,
न चाहते हुए भी नफरत करें,
उस वृक्ष में उन्हें वोह खौफनाक राक्षस जो दिखें ...
9.
राक्षस अहम का -
हंसने में असहज, आक्रोश में नहीं,
जिसने अपनों से प्रेम के दो बोल कभी बोले नहीं,
जिसमें खुद से पहले, दूसरों को रखने की क्षमता नहीं ...
10.
राक्षस अज्ञानता का -
जो पूर्ण हो पैसे से, प्रेम से नहीं,
जो तौले रुतबे को, देखे भाव को नहीं,
जो है भरा सा, ज़रा भी खाली नहीं ...
11.
पर आज, उन राक्षसों से आजाद,
अपनी खुशबू से भी सिखा रही अपने फूलों को उनकी बघिया माँ,
दिखा रही राक्षस के पीछे का बेबस पौधा,
डर है जिसे अपने कमजोर होने का ...
12.
माँ, आपने अपनी छाया से इस फूल को न होने दिया जुदा,
एक सुन्दर परिवार चुन जो नियति के हवाले था कर दिया,
आज ध्यान में आपके साथ होने का एहसास फिर वापस आ गया,
पर उस मूर्ख पेड़ को अपना पाने का इम्तिहाँ ये क्यूँ दे दिया?
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