Wednesday, July 24, 2024

अब बस!

1.

मैं पूछूँ खुद से -

जिंदगी में अब क्या करूँ? 

चढ़ तो गया हूँ ऊपर बहुत,

इस अहम के नशे से और क्या लूँ ? 

2. 

आता कोई जवाब, उससे पहले 

चेहरे पे एक मुस्कान आ गयी,

विचार की जगह,

हाथ में कलम दे गयी ...

3. 

कभी सत्ता, कभी शौहरत,

और कभी अपनों से खेलने में कसर न है मैंने छोड़ी,

अब घर बैठ, कलम घिस,

परिवार में रहने का मन करता है बस यूँ ही ... 

 4.

थोडा आलस है, थोडा डर भी,

थोड़ी परेशानियां, थोड़े बहाने,

कुछ छोड़ना है, कुछ पकड़ना,

कुछ कम करना है, कुछ ज्यादा ...

5. 

इस नाप-तोल को तो है चलते रहना,

क्यूंकि परेशानी चाहे जितनी हो बड़ी,

है तो वो मुझसे ही जन्मी,

मुझसे बड़ी तो वो हो नहीं सकती ...

6.

क्या तू पूछता और क्या है कहता,

बना इस अहम के धुंए का शीशा,

अपने फैलाव को समेट,

और शीशे पे स्याही तू रचता जा ...



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