Friday, April 13, 2018

अब मैं बोलूंगा

मैं तन नही हूँ, मैं मन भी नहीं हूँ ।
पता नही मैं क्या हूँ पर ऐसे ही बैठे बैठे,
जिसको मैं "मैं" समझता था,
वह बोल उठा - 

बहुत दिन हुए कुछ कहे मुझे,
इस बार मैं तुझसे बोलूंगा,

इस फुदकते, उछलते मन संग,
अब मैं खुसपुसा के खेलूंगा

इस गुत्थाधारी शरीर को मैं
शब्दो के चाबुक से ढकेलूँगा

अपनी अंतर-ज्योति से जगमगाते इस,
क्षणिक माया-जग में मैं नाचूंगा

ऐ नटखट मन और युवा तन तुम,
अब चलो शिखर की पित्र-गुफा तक,
संकोच नही, अपराध बोध बिन,
बस बढा कदम तू अपनी माँ संग।

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