Saturday, May 28, 2022

टूट जाऊं

मन करता है

कि अब बस टूट जाऊं;

बिखर के,

टुकड़ों में,

बह जाऊं मैं,

आसुओं में...

 

मन करता है की,

अब बस टूट ही जाऊं;

बे-कारण ही सही,

बिन बहाने,

जीत के इस माहौल में,

अब छोड़ दूँ साहस मैं...


क्या है ये अजीब सी चाहत?

समझने की गलती है शायद-

इच्छा है टूटने की नहीं,

है यह मिट जाने की ललक,

अरे, शब्दों से खेलना छोड़ दो साहब,

दिखा भी दो मुझे मेरे शिव की झलक !

तुम्हारी हार जीत के है न कोई मायिने,

न वोह मिले मुझे, बिना खुद को मिटाए ...

 

Powered By Blogger