Tuesday, October 3, 2023

बदलाव, और दोस्त?

I

तुम परदेस निकल गए -

पर हम तो देसी रह गए। 

चप्पल पहने, फ़ाइलें घिसते - 

तुम सूट-बूट में एप्पल टकटकाते।

बेरंग इनोवा में सिमटे सफर मेरे - 

तुम लेटेस्ट सेडान चलाते। 

जंगल के रास्ते, झरने हम खोजते - 

तुम बिजनस क्लास से हवाई जाते। 


II

पहले ऑर्कुट और फिर एफबी के जरिए - 

दुआ सलाम हो जाते थे। 

अब तो व्हाट्सएप ग्रुप पर भी - 

सिर्फ दुनियादारी के पैगाम ही हैं आते। 

इंस्टा से कभी-कभी - 

तुम्हारे समाचार मिलते रहते थे। 

पर जमीन पे बैठ, कश मार के,

बिखरने के मौके कभी नहीं मिलते। 


III

आस हुई, की आज तुम्हें फोन लगा ही लें - 

कैसे भी तुम्हें सलाम फरमा लें,

टूटी फूटी अंग्रेजी अपनी, परदेस वाला ऐक्सेन्ट भले ना हो इसमें,

सोचा जरा हिन्दी मिक्स कर के काम चल ही लेंगे, 

याद दिलाया खुद को, कि ज्यादा मज़ाक नहीं उड़ाना है,

कालेपन पे हसने को, रेसिस्ट कहता ये जमाना है। 

छिछोरापन भी ज्यादा नहीं करना है, 

अब इज्जतदार आदमी हमारा चंदनवा है। 


IV

फिर लगा ही लिया तुम्हें फोन हमने, 

झटपट उठा भी लिया उधर तुमने। 

जैसे की तुम भी इंतज़ार में ही बैठे थे,

इतनी इज्जत से किया तुमने सलाम, लगा की ऐठे थे। 

हिचक थी हममें, और थोड़ी तुम में भी,

ना रिश्तेदार, ना किसी अंग से संबंधित गाली दी।

शराफत से पूछ लिया पारिवारिक स्थिति का हाल,

अच्छे से बात हुए, हो भी गए थे दस साल। 


V

इतने में बात हो गई कॉलेज की चालू,

और उठ गई कहानी जिसकी किरदार थी शालू।  

उसका नाम सुन तुम विडिओ पे ऐसे शरमाए,

जैसे काले आसमान पे गुलाबी बादल छाए। 

पुकार ही दिया फिर हमने,

तुम्हें उस रेसिस्ट नाम से। 

गूंज गया व्हाट्सएप का सर्वर,

गालियों की धड़ाम से। 

याद आ गई लड़कपन की मस्ती,

धीरे से हमारी बातें हुई सस्ती। 

रखने का मन तो नहीं था किसी का,

पर ऑफिस कि कॉल थी उसकी।  


VI

समय और जगह से परे,

यह कैसा संबंध है? 

इसमें जो घुल गया है हमारे, 

असली चरित्र का रंग है। 


VII

पार किया था साथ हमने, 

जवानी का हर एक चौराहा। 

दूरी चाहे जितनी हो जाए, 

दूरी, चाहे जितनी हो जाए - 

आज भी एक दूजे के लिए,

दिल में उतनी ही है जगह। 

परछाई

थोड़ी चाहत है, थोड़ी जरूरत भी,

कम्बखत हिम्मत ही होती नहीं है।

मत बनाओ इसको और मुश्किल,

यह मुश्किल थोड़ा पहले से ही है।

अपनी कमजोर सी इस परछाई को अपना लो,

शायद, हिम्मत भी तुम में ही है।


जरा गहरे से देखो इस परछाई को अपनी,

नकली डर के सिवा, कुछ भी नहीं है।

थोड़ी नादान, थोड़ी बहकी सी है जरूर,

पर यह छवि तो अपनी ही है।

 

समा लो अपने प्रेम सागर में,

इसकी सिसकती अस्तित्व की बूंदें।

पुराने शिकवे, शिकायती किस्से सारे,

छोड़ो और लगा लो इसको गले।

ना खोजों तुम चाभी इधर-उधर,

हर ताले की चाभी अंदर ही है।

 

कभी पुश - कभी पुल

तुम्हें महलों की दरकार थी,

पर मैं तो झोपड़ी में खुश था। 


तुम जमीन के सौदे करते गए,

इधर इस धरती ने मुझे खरीद लिया। 

तुम जहाजों में सफर करो,

मैं तो बादलों में ही खो गया।

तुम हवाओं में महल बनाते रहे,

मैंने जंगल की दौलत को कबूल किया। 

तुम माया के मेलों के मजे लो, 

मैं तो शून्य में बस के भस्म हुआ।  


पुश करते चले तुम सारी ज़िंदगी,

पर मकसद तो साला पुल था। 

Bad Trips of Life

Craved ingestion, makes the mind fly wild – 
Rapid bursts of shock and surprise.  
Fear and horror that turns me pale –
Steely knives, beds of blood-stained nails.
 
The cornered heart did, what it always does –
    went and shared with her in simple words.
The cries of help from the innocent one inside –
    feelings exposed, nothing left to hide.
 
She responds, as she always does –
    unconditional understanding that breaks the curse.
As the body exhales the molten steel –
    her love shine, the violence heals.
 
As our love expands, to the worlds beyond –
    your heartfelt words ignite our bond.
So I learn again through this rough ride –
    my biggest blessing, is having you by my side.
 
When together we’re strong, we always prevail –
    despite embellishments of knives and nails.
We’ll keep turning our worries and freakouts around –
    growing like children, as joy abounds... 

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