Sunday, June 10, 2018

मोर रायपुर

अकसर देखा जाता है की हम एक शहर की पहचान उसकी किसी प्रसिद्ध इमारतआधुनिक कायाकल्प या दार्शनिक स्थल से करते हैं। ऐसे में शहर की कल्पना एक स्थाई छवि से हो जाती है, चाहे वो आगरा की ताजमहल से हो, दिल्ली की लाल क़िले से या तिरुपति की बालाजी मंदिर से। आज सुबह हुई, तो मन में एक विचित्र विचार ने अपनी रोज़मर्रा की जीवनशैली से अलग हट, अपने शहर रायपुर के बारे में और जानने की चेष्ठा मुझमें जगाई। बस फिर क्या था - मैंने अपने अंदर के  सोये हुए विचारक को जगाया और अपने इस चहीते शहर की पहचान का स्तम्भ खोजने निकल गया।

अपने रायपुर के अस्तित्व के सम्बंध में जानने का इरादा लिए मैं प्रसन्न-चित से यहाँ के प्राचीन (और मेरे मोहल्ले में स्थित) आनंद समाज वाचनालय में पहुँच गया। किताबों से मैंने जाना कि रायपुर को एक नगरीय निकाय का रूप लिए 150 साल हो गए हैं। इस तथ्य ने मन को गहन विचार में डाल दिया। मेरे मन में रायपुर की छवि एक लगातार बेहतर स्वरूप में ढलते हुए शहर की है। जिस गति से रायपुर में मैंने अधोसंरचनाओं का विकास होते अनुभव किया है, यह कल्पना कर पाना मेरे लिए मुश्किल था की इस बदलते, उभरते शहर के पीछे 150 सालों के इतिहास का बोझ है।

अपने शहर की पहचान का स्तम्भ खोजने जब मैंने एक जिज्ञासु छात्र का चश्मा पहना तो पाया की मेरे शहर ने बड़ी सहजता से अपने इतिहास को अपने अस्तित्व में पिरोया है। इस शहर का इतिहास इसका बोझ नहीं, क्यूँकि इसके ऐतिहासिक धरोहर सबके लिए ज्ञान के जीवित बिंदु हैं। सरलता से शहर के मध्य में स्थापित जय-स्तम्भ, इस शहर में भाग-दौड़ करते, दैनिक जीवन में व्यस्त नागरिकों को दिशा देने के अलावा अपने राष्ट्र के लिए शहीद हुए, माटी-पुत्र वीर नारायण के जज़्बे को अपने दिलों में जीवित रखने की प्रेरणा देता है।

इस शहर में स्थित प्राचीन तालाबों की कड़ियाँ, इस शहर को  प्रकृतिक और समाजिक रूप से जोडती नज़र आती हैं। स्वामी विवेकानंद जी के इन्हीं में से कुछ तालाबों में गोताखोरी का आनंद लेने के क़िस्से-कहानियाँ यहाँ बड़े उत्साह से सुनाई जाते हैं। और सुनाई भी क्यूँ ना जाएँ, यहाँ के युवा दिलों में स्वामीजी द्वारा दिए गए अमूल्य संदेश अभी भी गूँजते प्रतीत होते हैं। तालाब किनारे स्थित प्राचीन आस्था के केंद्र, इस शहर के सभी वर्गों को एक आलौकिक प्रेम की भावना से बाँधते हैं।

मैं अपने शहर के इतिहास की धारा में इतना लीन हो गया की उसके प्रतीक चिन्ह की खोज से ही भटक गया। शायद सच तो यह था की किसी भी विशेष व्यक्ति, स्थान, या संरचना में रायपुर की पहचान को सिमटा पाना असम्भव सा दिख रहा था। मेरे इस शहर में बिताए ख़ुद के जीवन के मीठे अनुभव का स्त्रोत भी मुझे अभी अपनी समझ से दूर लग रहा था। सवालों से भरे हुए मन को बहलाने के लिए मैं अपने चहीते स्थान पर चाट खाने गया। चाट से पेट तो भर गया पर मन अभी भी सोच में डूबा था- कितना बदल रहा है मेरे शहर का स्वरूप! कुछ साल पहले तालाब किनारे स्थित यह उद्यान अस्तित्व मे भी नहीं था। ना ही यहाँ तक आने के रास्ते इतने सुविधाजनक थे। और तोह छोडो, इस चाट-ठेले का स्वरूप भी आधुनिकता की लहर से प्रभावित दिख रहा था!

अपने मंथन से हट कर, मैंने आस पास के लोगों को देखा तो मुझे कई मुस्कुराते चेहरे नज़र आने लगे। कितना विचित्र है यह शहर-अनेकों धर्म, उम्र और क्षेत्रों से आए लोग इसको अपना घर और अपनी पहचान मानते हैं। इन लोगों में कई भिन्नताएँ हैं पर सबका दिल इस शहर के लिए धड़कता है। ऐसा लगता है की इस शहर के बदलते स्वरूप का कारण ही  इन लोगों का उत्साह है। उनकी जिन्दादिली और परिश्रम से इस शहर का दिल धड़कता है। इस बदलते, उभरते शहर की पहचान की खोज में डूबे मन को तालाब के मुख पर लहराते राष्ट्रीय ध्वज को देख, राष्ट्रपिता का एक लेख याद गया। रंग-बिरंगे भवनों की छांव में बैठ बिताये उस पल में मुझे अपनी भूल का अहसास हुआ!


 मेरे रायपुर की पहचान अन्य शहरों की तरह मुट्ठीभर विशेष इमारत, व्यक्ति या संस्थान से नहीं है। रायपुर के हर नागरिक के दिल में अपने शहर के प्रति जो प्यार और अपनापन उमड़ता है, वही उसकी असली पहचान है। रायपुर अपने इतिहास के धरोहरों को अपनी परिवर्तन-गाथा का आधार बना कर अपने नागरिकों के सम्वेदनशील प्रयासों से लगातार एक स्वच्छ, सुंदर, आधुनिक और स्मार्ट रूप ले रहा है। रायपुर का हर नागरिक इस शहर को अपनी पहचान मानता है और शायद यही वजह है कि, इस शहर की पहचान भी अपने नागरिकों के अपनत्व के भाव से है।
इस विचार से मानो मेरे रोंगटे खड़े हो गए, जाने अनजाने में मैंने भी अपने शहर को बेहतर बनाने के लिए हर सम्भव प्रयास करने का संकल्प ले ही लिया था। शायद यह इस शहर का जादू ही है जो हर दिल को अपनी ओर खींच लेता है।
तिरंगे को लहराती हवा का मेरे थके हुए शरीर से स्पर्श, चेहरे पे एक गहरी मुस्कान ले आया। इस रायपुर के प्रतीक चिन्ह की खोज को भी शायद यहीं ख़त्म होना था - यह है मेरा रायपुर, आपका रायपुर... मोर रायपुर


 'मोर' in the local Chhattisgarhi dialect means 'Mine'

4 comments:

Unknown said...

You are a real inspiration for all age groups, who are culturally socially and intellectually diversified... The way you are creating little milestones I have a conviction that this will transform lives .

Unknown said...

Aptly written.

Unknown said...

Sir,
Can we Take our Raipur to one More Level ? can we ?

Unknown said...

DEAR SIR -SIR AIR FORCE RALLY IN CHHATTISGARH WHEN CONDUCTED.WE HOPE YOU THIKING ABOUT THIS. MY SELF PANKAJ VISHWAKARMA RAIPUR DISTRICT..SIR PLESE REPLY 8349126049 MY CONTECT.

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