Wednesday, April 24, 2024

स्वीकार

 

I.

क्या चल रहा है मन में?

कहीं कोई भद्दा मज़ाक तो नहीं?

पहले भी तो ऐसा हुआ है –

बनता दिख, सब बिगड़ गया है,

कहीं जल्दी तो नहीं खुश होने की?

II.

लाजमी है तेरा यूं डरना,

थोड़ा ठहरना, लपकने से झिझकना,

जरूरी भी हो शायद,

थोड़ा बच के चलना।

III.

तेरी चिंता से परे अब बात आई मुझे समझ,

अर्रे अपने को नहीं कोई बच के चलने की गरज,

जिंदगी दे रही एक नन्हा सा नया तोहफा,

बंधन समझ, इसे आंक मत छोटा,

वरदान है जो उसने तेरी गोद में ला रखा,

सामने इसके ना मूल्य किसी और चिंतन का।

IV.

तो मेरे दोस्त,

मत बचा तू आज मुझे टूटने से,

टूट के भी तो बच्चे हम उसी के रहेंगे।

जब समझा उसने काबिल हमें उस अमूल्य तोहफे के,

आ अब उसे सहज खुश हो के स्वीकार लें...



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